Saturday, February 18, 2012

ढलते सुरज की रंगत किसी शायरी से कम नही
शमा के जलने मे खून की रंगत नही
जिन्दा जलें वो जो बे खबर हैं
जंजीरों के पिघलने का उन्हें गम नही
इंसानी जिन्दगी कत्ले आम है
इस लहु से जिन्दगी लथपथ है
उम्मीद के सहारे जीना सीख ले
कल के सूरज की रंगत देख ले.

29-10-09
सुजला

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