ढलते सुरज की रंगत किसी शायरी से कम नही
शमा के जलने मे खून की रंगत नही
जिन्दा जलें वो जो बे खबर हैं
जंजीरों के पिघलने का उन्हें गम नही
इंसानी जिन्दगी कत्ले आम है
इस लहु से जिन्दगी लथपथ है
उम्मीद के सहारे जीना सीख ले
कल के सूरज की रंगत देख ले.
29-10-09
सुजला
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