एक थी साई
विश्वास की जाई
बोली
मेरे भगवन तुम महान हो
सभ्य हो
सत्य हो
सैर भी हो
भ्रम तो नहीं हो?
विश्वास ने दिया धोखा
भ्रम ने हाथ थामा
चली साई उसके आसरे
बोली भगवन तुम महान हो
वैध हो
अवैध हो
असम्भव हो
भ्रम ने छोडा साथ
साई गिरी, फिर उठी
वैध के सहारे
झेले अंगारे
खाये क्षण
अवैध के साथ हो ली
बोली मेरे भगवन तुम महान हो
विश्वास, भ्रम, वैध अवैध
सब को लेकर
मैं तेरे पीछे
मैं साई विश्वास की जाई
तुझमें समाने चली आई
ये कोई भ्रम तो नहीं?
Wednesday, November 12, 2008
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