तुम राम मै रावण.तुमसामाजिक मै असामाजिक.
तुम राम, मै रावण
तुम्हारेलिये आवश्यक लौकिकसम्मान
मेरेलिये आवश्यक आत्मसम्मान.
तुम्हारेलिये आवश्यक अहिल्या का उद्धार
मेरेलिये आवशक शुर्पणखा की नाक का बदला.
तुम राजा के पुत्र जो ब्राम्हण बने,
मै ब्राम्हण पुत्र जो राजा बना.
तुमने शिव का धनुश उठाया,
मैने शिव का कैलाश उठा लिया.
तुमने छल से छुप कर बालि को मारा,
मै खुलेआम बल से लड कर बालि से हारा.
तुम हर साल अपनी छल से जीति हुई,
विजय का डंका बजाते हो,
मै हरसाल सारी दुनिया के पाप उठाये,
जल लाता हूं
फिर तुम कैसे राम, और मै क्यूं रावण
जवाब
न मै राम न तुम रावण
आत्मसम्मान से पहले जरुरि है
आत्म नीरिक्षण
लौकिक सम्मान तो मिल ही जायेगा.
अहिल्या उद्धार या शुर्पणखा की नाक के
बदले ही मे सिर्फ
सामाजिकता नहि मिलेगी.
राम को असामाजिकता का नाश करना होगा
उसकेलिये रावण होने की जरुरत नही
आज छल से छुप कर बाली को मारने की भी आवश्यकता नही
हर दिन तो खुलेआम राम मर रहा है
चाहे धनुश उठाओ या कैलाश
आज राम और रावण दोनो ही दयनीय हैं.
Wednesday, November 12, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment