Wednesday, November 12, 2008

रागिनी
विगत राग की रागिनी है ये जीवन
मन्द्र मध्य तार
आरोह, अवरोह सभी हैं इसमे
कैसे झंकार हो तारों से
जब कोमल और तीव्र
बेसुरे लगते हों?
जीवन मे रिशभ है
तो धैवत भी है
गंधार है तो निषादभी है
कोमल और तीव्र के झगडे मे
सरगम अधुरी है
मैने संगीत साधना की
ध्रुपद और ख़्याल दोनो ही गाये
पर जीवन मे तराना न ला सकी
किसको दोश दूं?
स्वरों को या रागों को?
लगता है जीवन का संगीत
शायद अधुरा ही रहेगा

No comments: