Wednesday, November 12, 2008

काश

काश से सवाल हल हुआ नही करते
यह जिन्दगी इसके सहारे जी नही सकते.
जब जागो तभि सवेरा, यह एक कहावत है
पर रात के अन्धेरे को दिन का उजाला कह नही सकते
बाप बेटे की पटती नही
सास बहू की जमती नही
मां बेटी एक तरफ हो जाएं
तो बाप बेटे की भी चलति नही.
रिश्तों में जब इतनी कडवाहट है
तो विचारों मे समझदारी कहां से हो?
काश ऐसा हो सकता?
यह एक भ्रम है
जिन्दगी जीने का नाम है
यह एक क्रम है.




शांति की खोज

घर से निकली थी
शांति की खोज में
शांति?
अरे वही जिसे हरकोई
मन:शांति के नाम से जानते हैं.
जिसजिस को पूछा,
शांति मिली क्या?
पूरब से पश्चिम तक
गरदन हिला कर
जवाब मिला नही.
हर किसी ने सलाह दी
आगे बढती जाओ
जिन्दगी के उस आखरी छोर पर
शायद खडी हो!
वहां तक जाने के लिये
मै अभी तैयार न थी.
इस लिये लौट आई.
आकर झरोखे में बैठ गई
आपने कभी झरोखे मे बैठ कर
नीचे झांक कर
देखा है?
जरूर देखिये
शायद वहीं आपके प्रश्ण का
जीवन के सारांश का
न चाहते हुए भी
उत्तर मिल जाये.
वही हुआ
नीचे झांक कर देखा
अरे! ये आक्रुति तो पहचानी सी है
झरोखेसे उठ कर
दालान मे आई
कुंडी खडखडाई
अन्दर से आवाज आई
खुला है
जाकर देखा
आंख पर चश्मा
हात मे किताब
शांतचित्त किताब मे मग्न
मुखप्रुष्ट पर झांका
हंसते हुए खडी थी
मन: शांति.

No comments: