फिर याद आई तेरी बिखरी
जिन्दगी की
क्या हुआ अगर तू बिखर ने से पहले
समेट न सकी
कहींतो उस बिखरने मे
कोई फूल मुस्कुराया होगा
व्यंग का ही सही
कोई तो कांटा नरम पडा होगा
कटाक्षोन का ही सही
उठ सखी उठ
तेरे अन्दर जो बिखरापन है
उसे झिंजोड दे
तेरे अंतर मे वो झंजावात है
जो बिखरेपन के बादल को चीर देगा
बिजली की तेजीसे समेट लेगा
जरूरत है सिर्फ एक किरण की
उठ सखी जिन्दगी फिर
मुस्कुरा रही है।
एहसास की परिधी मे
जी रही जिन्दगी है
कहांसे शुरु करुं?
जन्म से?
जन्म देने का एहसास
जन्म लेने का एहसास
प्यारे शिशू के
होने काएहसास
उसके रोने हंसने
लडखडाने का एहसास
आगे बढती उम्र का एहसास
बचपन मे बचपने का एहसास
किशोरावस्था में
चंचलता का एहसास
जवानी मे जवानहोंने के
अहंकार का एहसास
मध्यावस्था मे अपने
होंने का एहसास
व्रुधावस्था की देहली पर
जिन्दगी जीने का एहसास
कैसी है ये जिन्दगी जो
एहसास की परिधी से बाहर
एक पल भी जी नही सकति!
और तो क्या कहुं
जीवन के अंतिम क्षण् मे भी
इस एहसास ने साथ नही छोडा
क्योंकी मरने से पहले
मरने का एहसास जो साथ था ।
कहां गये वो ?
भगवान बुद्ध जिन्होने
पक्षि को बाण से घायल देखा
कृश व्यक्ति को दयनीय स्थिती मे
पेट भरने के लिये
भीख मांगते देखा
जीवन की अंतिम अवस्था
शव को ले जाते देखा
उसके पीछे रामनामसत्यहै
लोगों को कहते देखा
सबकुछ छोड कर
उस सत्य के लिये
उन्हें भटकते देखा
आज उसी बुद्ध की जमीन को
हडपते देखा
राम ने रावण को मारा
सीता को बचाने के लिये
आज रावण के हाथों
सीता को मरते देखा
कहां गया वो राम ?
कृष्ण की सहायता से
पांडवों ने कौरवों को हराया
आज कौरव अनेक पांडवों का
नाश कर रहे हैं
कहां गया वो कृष्ण ?
शिवाजी ने मां की सीख को
जीवन मे उतारा
प्रजा की खातिर न्याय को गले लगाया
अपने पुत्र को फांसी की सजा
या देशनिकाला दिया
आज पुत्र के खातिर बाप को
बेगुनाह को मारते देखा
कहां गये वो शिवाजी ?
भगतसिंह सुखदेव को देश के खातिर
फांसी पर चढते देखा
लाजपतराय नेहरु को डंडे खाते देखा
बापू को सत्य,अहिंसा के लिये मरते देखा
आज सिर्फ ` मेरेलिये घर को धन से
भरते देखा
कृषव्यक्ति भुक से मरता है
मरा करें
सीता अपमानित होती है
हुआ करें
गरीब जनता कौरवों से पिटती है
पिटा करें
पुत्र के खातिर बेगुनाह मरता है
मरा करें
सत्य, अहिंसा, देश बिकता है
बिका करें
ये कलियुग है
राम्र राज्य नही ।
Friday, November 14, 2008
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